दिन के अंत में, हमें एक बहुत छोटी वीडियो वृत्तचित्र, MITRA उपक्रम देखने के लिए आमंत्रित किया गया। MITRA प्रोजेक्ट महाराष्ट्र सरकार, विपश्यना अनुसंधान संस्थान, इगतपुरी और कुछ विपश्यना केंद्रों की एक संयुक्त पहल है। MITRA (Mind In Training for Right Awareness) का उद्देश्य छात्रों का एक सर्वांगीण मानसिक, शैक्षणिक और व्यक्तित्व विकास है, जो कि आनापान ध्यान के नियमित अभ्यास से उनकी जागरूकता और एकाग्रता के स्तर में सुधार करता है।
ग्यारहवाँ दिन
श्री गोयंका जी द्वारा अंतिम वीडियो प्रवचन, ग्यारहवें दिन प्रातः 4.25 बजे शुरू होता है। इस प्रवचन में हमें वे अपनी यात्रा से साझा करते हैं और साथ ही साधकों को घर लौटने के बाद भी विपश्यना का अभ्यास करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसके बाद धम्म हॉल में अंतिम ध्यान सत्र आयोजित किया जाता है।
हमने उस सुबह धम्म गिरि में अपना आखिरी नाश्ता किया।
अब VIA (वि वि वि) और धम्म गिरि को अलविदा कहने का समय आ गया था।
हम में से अधिकांश में उपलब्धि की भावना थी। निश्चित रूप से इस प्रकार के 10-दिवसीय शिविर को सफलतापूर्वक करना सरल नहीं है। शिविर की कठोरता के कुछ कारक: -
सर्वप्रथम, किसी से कोई बात नहीं करना।
द्वितीय, रात का खाना नहीं।
तृतीय, 10 निरंतर दिन, प्रति दिन लगभग 11 घंटे ध्यान करना।
चतुर्थ, अधिष्ठान। प्रति दिन 12-13 घंटे फर्श पर बैठना अपने आप में बहुत कठिन कार्य होता है। लेकिन अगर हम अधिष्ठान के पालन की आवश्यकता को जोड़ते हैं - बैठते समय आसन नहीं बदलना, और हाथों को न हिलाना - तो कठिनाई का स्तर कई गुना अधिक लगता है।
कोई आश्चर्य नहीं, शिविर से कुछ साधक बीच में ही शिविर छोड़ कर चले गए।
लेकिन आनापान और विपश्यना ध्यान की तकनीक सीखने में बहुत आनंद का अनुभव होता है। इनमें आपको बदलने की क्षमता है। वो 10 दिन का शिविर आपको एक प्रकार से अपने नित्य के दौड़-भाग वाली दिनचर्या में विश्राम लेने बाध्य करता है, आपको अपने आप में देखने का और आपको और अच्छा इंसान बनने का संकल्प लेने में सहायता करते हैं। शिविर के दौरान हम जो दो बहुत महत्वपूर्ण शब्द सुनते रहते हैं, वे हैं ‘अनिच्च’ (संस्कृत में अनित्य) और ‘समता’।
ग्यारहवें दिन जब मैं बाहर सार्वजनिक क्षेत्र में बैठे संध्या के लिए प्रतीक्षा कर रहा था मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब मैंने यह पाया कि शिविर समापन के पश्चात उधर से जाने वाले सभी साधकों के चेहरे से शांति और संयम झलक रहे थे।
सह-यात्री
मेरे समूह में लगभग 60 साधक थे। हम 10 दिनों के लिए एक-दूसरे के आस-पास लगभग 15 से 16 घंटे बिता रहे थे, परंतु हम एक-दूसरे से आर्य मौन की समाप्ति तक परिचित नहीं थे।
आर्य मौन की समाप्ति के उपरांत जो सीमित समय था, उसमें मैं अपने समूह के कुछ साधकों के साथ बातचीत कर सका। उनमें से प्रत्येक से मैंने कुछ अच्छा और दिलचस्प सीखा।
पुराने साधकों में श्री बाबूराय पई थे जो मंगलुरु निवासी सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या यह आपका दूसरा शिविर है, तो उनके उत्तर ने मुझे स्तब्ध कर दिया। यह उनका दूसरा शिविर नहीं था, न ही तीसरा और न ही चौथा। यह उनका 16 वां (हाँ, सोलहवाँ) विपश्यना शिविर था। निःसंदेह प्रेरणादायक।
एक पुराने साधक श्री देबजीत को अप्रैल 2019 में भारतीय प्रबंध संस्थान अहमदाबाद में PGPX कार्यक्रम के 2019-20 सत्र में शामिल होना था। उनकी करियर प्रोफ़ाइल उनकी उम्र के एक युवा के लिए असाधारण है। लेकिन जीवन में उनकी प्राथमिकताएं बहुत स्पष्ट हैं। वह अपने हम उम्र उन साथियों से भिन्न हैं जो केवल धन के लोभ में अपनी ज़िंदगी फूँक रहें हैं.
एक आयरलैंड निवासी पुराने साधक को उडुपी-मणिपाल, मंगलूरु और गोकर्ण के बारे में इतना अधिक ज्ञान था, कि मुझे, जो इस क्षेत्र का मूल निवासी हूँ को भी नहीं पता था।
नए छात्रों में, सबसे कम उम्र के, भिवंडी निवासी श्री प्रवीण शेट्टी एक उभरते हुए फिल्म संपादक हैं।
हमारे ही समूह में नवी मुंबई निवासी युवा एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के डॉ। बिश्नोई थे जो कि अभी हाल में मेडिकल कॉलेज से निकले थे। मैंने उन्हें सेना चिकित्सा कोर (ए एम सी) में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। आशा करता हूँ कि वे सेना में बतौर चिकित्सक भर्ती हों।
श्री पीयूष अग्रवाल ने भारतीय प्रबंध संस्थान रोहतक से एम बी ए की पढ़ाई पूरी की थी। उन्हें अपने दीक्षांत समारोह के लिए शिविर के उपरांत रोहतक पुनः जाना था। उन्हें पहले से ही कैंपस प्लेसमेंट के जरिए नौकरी मिल चुकी थी।
मुंबई में सेवारत एक सत्र न्यायाधीश जो हमारे समूह में थे, से भी मेरा परिचय हुआ।
श्री जितेश मेध मुंबई के एक युवा, गतिशील आई टी पेशेवर हैं।
श्री कलिटा गुवाहाटी, असम से हैं। लम्बे बालों से बनी उनकी चोटी इतनी अछी है और उन्होंने उसकी देखभाल इतनी अच्छी तरह की है कि उसे देखकर अनेक युवा महिलाओं को हीन भावना हो जाएगी।
श्री कृष्णा अल्गावे, एक सेवानिवृत्त शिक्षाविद, जो मूल रूप से धमतरी के थे, जिन्होंने रायपुर में पढ़ाई की थी और उन्होंने गोंदिया और नागपुर में सेवा की थी, अब मुंबई में बस गए, सबसे वरिष्ठ व्यक्ति थे जिनसे मैं धम्म गिरी में मिला था।
मेरे पड़ोसी श्री जयदीप वर्मा भी उसी शिविर में मेरे ही समूह में थे। वह एक फिल्म निर्माता और लेखक हैं, मूल रूप से चंडीगढ़, लेकिन अब मुंबई निवासी। उनके द्वारा बनाई गई कुछ फीचर फिल्में हैं हल्ला, लीविंग होम - द लाइफ एंड म्यूजिक ऑफ इंडीयन ओशन और बावरा मन। उन्होंने इंपैक्ट इंडेक्स बनाया जो आजकल क्रिकेट में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला सांख्यिकीय सूचकांक है। दसवें दिन रात्रि 10 बजे जब हम अपने धम्म हॉल के बाहर इंतजार कर रहे थे, हम भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि क्रिकेट खिलाड़ी श्री इमरान खान अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में आने वाले दिनों में भारत की दृष्टि से कुछ सकारात्मक कार्य करेंगे। उन्होंने मुझे एक लेख के बारे में बताया जो उन्होंने लिखा था। लिंक यहां दिया गया है:-
https://www.gulf-times.com/story/603391/Unparallelled-Imran-Khan-is-perhaps-the-greatest-a
मैं एक पूर्व सैनिक से मिला, जो ई एम ई में नायक थे। वह मेरे समूह में नहीं थे। उन्होंने पूर्व में भी 10 दिन का शिविर किया था और धम्म सेवक के रूप में भी सेवाएँ प्रदान की थी।
मैं औरंगाबाद के एक नौजवान से भी मिला, जो भारतीय सेना में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुक थे। मैं उनकी कड़ी मेहनत और अपार सफलता की कामना करता हूं।
एक और दिलचस्प व्यक्ति जो मुझे मिले, वह एक जोशिले नवयुवक थे, जो जानना चाहते थे कि मैंने अपनी मूंछों को कैसे बनाए रखा है। उन्होंने मुझे बताया कि वह नाइ परिवार से है। वह मुझे एक उत्पाद का नाम बताना चाहते थे जो मूंछों को बनाए रखने में मदद करता है लेकिन वह नाम उन्हें उस समय याद ही नहीं आया और मैं उस जानकारी से वंचित रह गया।
संध्या के माध्यम से, मुझे ठाणे से इगतपुरी जाने वाली हमारी सह-यात्री सुश्री ईशा गुलाटी से भी मिला।
और इस यात्रा में हमारा मार्गदर्शन करने वाले हमारे समूह (समूह-3) के सहायक शिक्षक श्री महेंद्र कोलटे। वे एक बहुत ही मृदुभाषी व्यक्ति हैं, जो हमेशा अत्यंत शांत रहते हैं । उनके आचरण में सदैव शांति और समरसता का अहसास प्रतीत होता था।
शिविर के लिए शुल्क और / या अन्य शुल्क
प्रश्न यह उठता है कि इस शिविर में भाग लेने हेतु या अन्य किसी प्रकार का कितना शुल्क देना होता है? उत्तर है - शून्य। शिविर के लिए VIA (वि वि वि) द्वारा किसी भी प्रकार का कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है। यह इस भावना से कि हमसे पहले के शिविरों के साधकों द्वारा जो दान प्राप्त हुआ है उससे ही हमारे शिविर का संचालन हुआ है। यदि आप चाहें आप भी दान कर सकते हैं, ताकि कुछ साधक भविष्य के शिविरों में भाग ले सकें। दान करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं होता है ना ही सूक्ष्म / असूक्ष्म संकेत या किसी भी प्रकार का मनाना इत्यादि। जब आप दान करते हैं, तो कोई भी आपको इतनी या उतनी राशि दान करने के लिए नहीं कहता है। साधकों में यह चर्चा का विषय ही नहीं है कि कितना दान दिया जाय या किसने दान दिया या नहीं दिया। चूंकि समाज के सभी वर्गों के लोग शिविर में भाग लेते हैं, ऐसे कई लोग हैं जिनके पास दान करने का कोई साधन नहीं है। इससे संगठन को किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं है । चूँकि हम दान काउंटर पर एक छोटी कतार में खड़े थे, मैंने नोट किया कि एक साधक ने 1050 रुपये दान दिया, दूसरे ने 20000 रुपये। तो यह सब साधक की क्षमता, विश्वास और इच्छा के अनुसार है। यह दान सयाजी उ बा खिन स्मारक ट्रस्ट के नाम पर किया जाता है। दान नकद या डेबिट / क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किया जा सकता है। ऑनलाइन भुगतान भी करने का प्रावधान है।
धम्म सेवा और शिक्षक
कुछ साधकों को लगता है कि वे दान करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन धम्म हेतु अपनी सेवा उपलब्ध कराना चाहते हैं। वे भविष्य के शिविरों के लिए धम्म सेवक बन सकते हैं। मौद्रिक दान करने वाले भी धम्म सेवा कर सकते हैं। धम्म सेवकों को जो उत्तरदाईत्व निभाना पड़ सकता है वह है भोजनालय में सेवा, धम्म हॉल को साधकों एवं सहायक आचार्य के आवश्यकतानुसार बनाए रखना, परिसर में सामान्य रखरखाव इत्यादि।
सहायक शिक्षक भी पूर्णकालिक आधार पर नहीं होते हैं। उन्हें स्वयं श्री गोयंका जी द्वारा प्रशिक्षित और चयनित किया गया है और वे इन शिविरों के समन्वय और संचालन के लिए आते हैं।
धम्म गिरी परिसर
धम्म गिरी परिसर में पेड़ ही पेड़ दिखाई देते हैं। मार्च में जब हम वहां थे, तब परिसर में बहुत हरियाली थी। इतने वृक्षों और पौधों को वहाँ लगाने की योजना जिन्होंने भी बनाई हो, जिन्होंने भी इतने वर्षों तक उनका पोषण किया हो - उन्हें मैं नमन करता हूँ। इगतपुरी में और इसके आसपास का सामान्य क्षेत्र काफी बंजर लगता है। शायद ही कोई वनस्पति हो। लेकिन धम्म गिरी परिसर उसके विपरीत है। यह वनस्पतियों से समृद्ध है और इस प्रकार, कई पक्षियों के लिए एक प्राकृतिक आवास है।
आर्य मौन के कारण हम हमेशा चुप रहते। हमारी चुप्पी के कारण पक्षियों का चहकना और भी बढ़-चढ़ कर सुनाई पड़ता था जो कि एक बहुत ही सुखद अनुभव था। मुझे स्मरण होता है हर शाम 6.00 से 7.00 बजे का तीसरा समूह ध्यान सत्र। उस समय दिन ढल रहा होता था। ऐसे समय में ध्यान करना, अधिष्ठान का पालन करते करते लगभग 35 से 40 मिनट के बाद ध्यान पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता। ऐसा प्रतीत होता था कि समय थम गया हो। लेकिन जैसे-जैसे एक एक मिनट गुजरता, शाम ढलती जाती थी और लगभग 6.45 बजे, हमारे धम्म हॉल के आसपास के पेड़ों पर अपने घोंसलों में लौटने वाले पक्षियों के जोरदार चहकने से बहुत आनंद का आभास होता। हमारी दिनचर्या के कारण मैं उन्हें कभी देख नहीं पाया, लेकिन मुझे लगता है कि कम से कम एक या दो हज़ार पक्षी उस समय वहाँ होते होंगे। सचमुच, यह मुझे बहुत प्यारा संगीत जैसे लगता था। इससे यह भी एक संकेत प्राप्त होता था कि समीप के मस्जिद से कुछ ही मिनटों में अब आज़ान सुनाई देने वाला है जिसके थोड़े ही देर बाद श्री गोयंका जी का स्वर और यह सत्र समाप्त।
साधकों को परिसर में पेड़ों से फूल या फलों को तोड़ना वर्जित है, जो मुझे लगता है कि एक बहुत अच्छा विचार है।
जब हम वहां थे, अनेक निर्माण कार्य पूरे जोरों पर चल रहे थे। मैंने केंद्रीय पगोडा में मरम्मत के बारे में पहले ही उल्लेख किया है। हमारे धम्म हॉल के करीब एक नई इमारत का निर्माण चल रहा था। विभिन्न निर्माण गतिविधियों के शोर और ध्वनियों से हमें बहुत कष्ट होता था। हममें से कई लोगों को इसकी आदत हो गई थी, क्योंकि कोई दूसरा विकल्प नहीं था। हमारे समूह के साधकों में से एक ने बहुत प्रयत्न किया, पहले इस विषय में उन्होंने धम्म सेवक से और इसके पश्चात हमारे सहायक आचार्य से उन्होंने निर्माण गतिविधियों के कारण ध्यान करने में एकाग्रता की कमी का वर्णन किया लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ भी करने में असमर्थता जताई। संभवत: विपश्यना की भावना में, हमें इसे भी समता की दृष्टि से देखना था और यह सोचना था कि यह भी अनित्य है।
धम्म गिरी का परिसर बहुत बड़ा परिसर है और हम उसके एक छोटे से हिस्से में ही सीमित थे। मैंने कहीं पढ़ा था कि परिसर के एक अलग हिस्से में लंबे शिविर (60 दिनों तक के शिविर होते हैं) आयोजित किए जाते हैं। परिसर से बाहर जाते समय, मैंने कुछ इमारतों को देखा, जिससे लगा कि वहाँ एक सघन आवास कालोनी है।
परिसर में और भी पगोडा हैं जिन्हें कि प्रमुखता से रेल गाड़ियों से भी देखा जाता है।
कहीं-कहीं, कुछ पगोडा में, विशाल घंटे हैं जो दिनचर्या के अनुसार गतिविधियों के प्रारम्भ होने का संकेत देते हैं। मैंने प्रतिदिन सुबह 4.00 बजे जागने का आह्वान किया है। मैंने यह भी उल्लेख किया है कि हम निर्धारित समय से पहले भोजन कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते थे। इन सब का संचालन इन विशाल घंटों की आवाज़ से ही होता था।
धम्म गिरी से इगतपुरी और वापस उडुपी-मणिपाल
इगतपुरी से ठाणे तक हमें मनमाड-एलटीटी एक्सप्रेस से यात्रा करना था जो कि वहाँ से सुबह 10.25 बजे चलती है और ठाणे 12.20 बजे पहुँचती है। ठाणे से हमें मत्स्यगंधा एक्सप्रेस से अपराह्न 3.45 बजे निकलना था। चूंकि करने के लिए बहुत कुछ नहीं था, इसलिए संध्या और मैंने तय किया था कि हम इत्मीनान से धम्म गिरी से इगतपुरी रेलवे स्टेशन पैदल जाएँगे। उसी ट्रेन से यात्रा करने वाली सुश्री ईशा गुलाटी ने हमें बताया कि वह भी चलना पसंद करती हैं और हमारे साथ जाएँगी।
हम जल्दी में नहीं थे और 8.15-8.20 बजे के आसपास हम वहाँ से निकले। परिसर में ही हम कुछ स्थानों पर उद्यान और हरियाली देखने रुक गए। सभी संभावित छायाचित्रों को क्लिक करने के बाद हमने म्यांमार गेट, जो धम्म गिरी का मुख्य द्वार है, लगभग 8.45 बजे पार किया।
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धम्म गिरी परिसर के भीतर एक उद्यान
(छायाचित्र सुश्री ईशा गुलाटी द्वारा)
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धम्म गिरि के मुख्य द्वार के पास
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मुख्य द्वार के पास आगंतुक स्वागत क्षेत्र
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मुख्य द्वार के पास
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टहलते-टहलते हम इगतपुरी रेलवे स्टेशन 9.15 बजे पहुँच गए। हम जहां हमारी रेलगाड़ी आने की सम्भावना थी उसके पास वाले प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कुछ कुर्सियों पर आराम से बैठ गए।
हमने अपने विपश्यना पाठ्यक्रम के कुछ साथियों को वहाँ देखा, निश्चित ही वे भी उसी रेलगाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे।
किसी ने हमारा ध्यान इस ओर दिलाया कि हमारी ट्रेन रद्द हो गई है। रेलवे अधिकारियों से हमें पता चला कि वह रविवार का दिन होने के कारण, आसनगांव स्टेशन के पास एक रेलवे पुल की मरम्मत होना तय था, जिसके कारण हमारी रेलगाड़ी रद्द कर दी गई।
तुरंत हमने वहाँ उपस्थित कुछ अन्य साधकों के साथ विचार-विमर्श किया और हमने एक उपयुक्त वाहन किराए पर लेने और सड़क मार्ग से जाने का फैसला किया। हम बाहर गए जहाँ हमें एक टैक्सी चालक मिला। उससे चर्चा करने के बाद हम सात यात्री, प्रोफेसर कृष्णा अल्गावे और उनकी पत्नी, श्री कलिटा, श्री जितेश मेध, सुश्री ईशा गुलाटी और संध्या एवं मैं उस टैक्सी में वहाँ से निकल पड़े। यह एक बहुत ही सुखद यात्रा थी। हम ठाणे में उतर गए। अन्य पांचों को मुंबई में अन्य स्थानों पर जाना था। इसलिए हमने उन्हें अलविदा कहा और ठाणे रेलवे स्टेशन के लिए एक ऑटो रिक्शा लिया।
हम लगभग 12.00 बजे ठाणे रेल्वे स्टेशन पहुँच गए।
ठाणे में हमारी चिर-परिचित मत्स्यगंधा एक्सप्रेस समय पर थी। लेकिन अगली सुबह हम उडुपी लगभग दो घंटे विलम्ब से पहुँचे।
हम लगभग 8.30 बजे अपने निवास पर थे।
संध्या और मैं विपश्यना, श्री गोयंका जी और धम्म गिरी के बड़े प्रशंसक बन गए हैं। हम अभी से अपने अगले 10-दिवसीय शिविर की योजना बना रहे हैं। हमने दिन में दो बार विपश्यना ध्यान को अपनी सामान्य दिनचर्या में शामिल कर लिया है।
इस लेख का शीर्षक "हमारी विपश्यना यात्रा" है और यहां मैं इस लेख के अंत में हूं। मैंने हमारी यात्रा से सम्बंधित एक-एक शब्द इस लेख में डाल दिया है। तो क्या मेरी विपश्यना यात्रा समाप्त हो गई है?
नहीं, नहीं नहीं नहीं नहीं! वास्तव में, मेरी विपश्यना यात्रा अभी प्रारम्भ हुई है। अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। लेकिन शुभ समाचार यह है कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह एक रोमांचक और सुखद यात्रा होगी।
मैंने अपने अधिकांश परिचितों को पहले ही 10-दिवसीय विपश्यना शिविर की अनुशंशा की है।
और आप? आप विपश्यना शिविर में भाग ले चुके हैं? आप भाग्यशाली हैं, हैं न?
क्या, मैंने यह सुना कि आपने विपश्यना नहीं सीखा है? फिर आप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? अगले उपलब्ध शिविर के लिए पंजीकरण क्यों नहीं करते हैं?
“सभी प्राणियों का मंगल हो, सबका कल्याण हो. बिना अपवाद के सब जीव-जंतु, सब प्राणी, चाहे वे चलने-फिरने वाले हों या स्थिर हों, चाहे बड़े, महान, मध्यम या छोटे हों, चाहे बहुत ही छोटे या ठोस हों, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, चाहे वह निकट हों या सुदूर, चाहे जन्मे या अजन्म, सब सुखी हों. कहीं भी, कोई भी किसी को धोखा न दें या किसी से घृणा न करें. कोई भी क्रोध या घृणा में किसी अन्य की हानि की इच्छा न करें.”
जय हिन्द!
(यह मेरे ब्लॉग पोस्ट "Our Vipassana Journey" (https://colktudupa.blogspot.com/2019/04/our-vipassana-journey.html ) का हिंदी अनुवाद है. उपरोक्त अनुवाद मेरे द्वारा किया गया था. इसके पश्चात, इसे श्री जय नाथ यादव, राजभाषा अधिकारी, भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर द्वारा सही किया गया. केवल उन्हीं के पहल के फलस्वरूप इसका संक्षिप्त संस्करण नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, इंदौर की गृह पत्रिका “दिशा” अंक 13, वर्ष 2019 में प्रकाशित किया गया. मैं श्री जय नाथ यादव का हमेशा आभारी रहूँगा.)