Tuesday, September 24, 2019

हमारी विपश्यना यात्रा

कुछ वर्ष पूर्व, श्री गणेश नायक, ज्योति साइकिल एंड फिटनेस, मंगलुरु  के मालिक (http://jyoticycle.com https://www.facebook.com/Jyoticyclemangalore/) ने मुझे विपश्यना, इगतपुरी और सत्यनारायण गोयंका जी के विषय में बताया था। उन्होंने मुझसे यह अनुग्रह किया था कि मैं ध्यान (meditation) सीखने के लिए 10-दिवसीय शिविर में भाग लूँ। उन्होंने इस तरह के शिविर में भाग लिया था और उनका यह अनुभव था कि इससे उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था और विपश्यना सीखने के परिणामस्वरूप वह एक अपेक्षाकृत अधिक अच्छे व्यक्ति बन गए हैं।

मुझे इसमें रुचि केवल तब जागृत हुई जब उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि विपश्यना का किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है और इसमें कोई संस्कार और अनुष्ठान शामिल नहीं है।

www.dhamma.org विपश्यना, इगतपुरी और श्री गोयंका जी को जोड़ने वाली संस्था की आधिकारिक वेबसाइट है जिससे मुझे निम्नलिखित जानकारी प्राप्त हुई:-

  • यह संगठन विपश्यना ध्यान - जैसा कि सयाजी उ बा खिन की परंपरा में स्वर्गीय श्री एस एन गोयंका द्वारा सिखाया जाता  है - हेतु है. 

  • यह किसी प्रकार का योग आसन नहीं है, बल्कि एक प्रकार का ध्यान है।

  • चूँकि इसे अंग्रेज़ी में "V-I-P-A-S-S-A-N-A" लिखा गया है, इसलिए मैं इसका उच्चारण  “VIPASSANA” व्हिप-आस-अना" कर रहा था। संयोगवश जब मैं ने हिंदी वेबसाइट देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि यह विपश्यना है। (‘पश्य’ का संस्कृत में अर्थ है ‘देखना’।) ‘विपश्यना’ का अर्थ है - ‘जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखना-समझना’।

श्री सत्यनारायण (एस एन) गोयंका का जन्म 1924 में म्यांमार में एक मूल रूप से भारतीय व्यावसायिक परिवार में हुआ था। उन्होंने सयाजी उ बा खिन से विपश्यना सीखी। कुछ परिस्थितियों के कारण उन्हें भारत आना पड़ा और उन्होंने 1969 में विपश्यना ध्यान की शिक्षा देना शुरू कर दिया। इगतपुरी में धम्म गिरि का अस्तित्व 1976 में हुआ। 1985 में उन्होंने  धम्मा गिरी में विपश्यना इंटरनेशनल एकेडमी (VIA)/विपश्यना विश्व विद्यापीठ (वि वि वि) की स्थापना की। इन वर्षों में न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में कई केंद्र स्थापित किए गए हैं । 2013 में श्री गोयंका जी चल बसे।


मैंने 10-दिवसीय शिविर में जाने का निश्चय किया। परंतु पाँच से भी अधिक वर्ष बीत गए और मैं इस शिविर हेतु 10 दिन का समय नहीं निकाल पा रहा था। अंततः, नवंबर 2018 में मैंने अपने आप से यह कहा कि अब किसी प्रकार का विलम्ब नहीं चलेगा, और किसी प्रकार की बहानेबाज़ी नहीं होगी। जब मैंने संध्या को बताया कि मैं विपश्यना शिविर में जाने की योजना बना रहा हूं, तो उसने भी शिविर में जाने की इच्छा प्रकट की। जब हमने इंटरनेट पर देखा, तो हमने पाया कि बेंगलुरु का केंद्र हमारे सबसे समीप है।

परंतु हमने यह निश्चय किया कि हम वहीं जाएँगे जहाँ यह प्रारम्भ हुआ था - अर्थात महाराष्ट्र में नाशिक के समीप वह छोटी सी जगह इगतपुरी।


हमने पाया कि वह शिविर जिसमें कि हम सबसे पहले जा सकते थे वह मार्च 2019 में प्रारम्भ होने  वाला था। शिविरों के लिए पंजीकरण आमतौर पर ऑनलाइन तीन महीने पहले ही खुल जाते हैं। इसलिए, दिसंबर 2018 में, हमने ऑनलाइन पंजीकरण फॉर्म (https://www.dhamma.org/en/schedules/schgiri#normal पर उपलब्ध है) भरा।
ऑनलाइन भरे गए विवरण  के अनुसार आवेदन पत्र


आवेदन भेजने के पश्चात, हमें एक ई-मेल प्राप्त हुआ जिससे हमें यह ज्ञात हुआ कि शिविर प्रारम्भ होने से लगभग दो से चार सप्ताह पहले ही हमें यह पुष्टि की जाएगी कि हमारे आवेदन स्वीकृत हुए हैं या नहीं।
धम्म गिरी से पावती


इस प्रकार एक अनिश्चितता की स्थिति थी। यह पक्का नहीं था कि हमें वहाँ होने का अवसर प्राप्त होगा। हम दुविधा में थे - क्या अब हम अपनी यात्रा के टिकट आरक्षित करें या वहाँ से पुष्टि की प्रतीक्षा करें।

हमने निश्चय किया कि इगतपुरी से पुष्टि की प्रतीक्षा किए बिना ही हम अपनी यात्रा हेतु टिकटों का आरक्षण कर लेंगे। हालाँकि यह 10 दिवसीय शिविर था - 07 से 16 मार्च 2019 तक, उनकी वेबसाइट (https://www.dhamma.org/en-US/courses/search) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, हमें वहाँ  06 मार्च 2019 को ही  पंजीकरण हेतु अपराह्न दो बजे के पूर्व वहाँ पहुँचना था एवं हम रविवार 17 मार्च 2019 (दिन 11) को प्रातः सात बजे के बाद ही वहां से निकल सकते थे।

संध्या और मुझे दोनों को भारत में रेल गाड़ी में साथ-साथ यात्रा किए बहुत समय हो गया था। अतः  हमने उडुपि से इगतपुरी तक रेल से ही यात्रा करने का विकल्प चुना।

हमने उडुपी से ठाणे तक 1081 किमी की दूरी मुंबई जाने वाली मत्स्यगंधा एक्सप्रेस से तय करने का निश्चय किया। और ठाणे से इगतपुरी, जो कि मात्र 103 किमी कि दूरी पर है, गोरखपुर एक्सप्रेस से।

अंततः 09 फ़रवरी 2019 को धम्म गिरी से वह बहु-प्रतीक्षित ई-मेल प्राप्त हुआ। उस 10-दिवसीय शिविर में हमारी पुष्टि हो गयी। हमें अपने साथ पंजीकरण फॉर्म की एक प्रति और पहचान सिद्ध करने के लिए लिखित प्रमाण ले जाना आवश्यक था।
धम्म गिरी से पुष्टि 



इगतपुरी के लिए रवाना
हम मंगलवार, 05 मार्च 2019 को मत्स्यगंधा एक्सप्रेस से दोपहर 3.35 बजे, उडुपी से रवाना हुए। कोंकण रेलवे पर यात्रा हमेशा एक सुखद अनुभूति होती है। उस समृद्ध हरियाली को देखना बहुत सुखद लगता है जिससे रेलगाड़ी गुज़रती है। जब भी मैं कोंकण रेलवे की यात्रा करता हूं, मैं श्री ई श्रीधरन को उनकी प्रतिबद्धता और उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए याद करता हूँ, जिसके कारण हमें इस तरह की सुनियोजित और भली-भाँति निष्पादित रेलवे परियोजना का उपहार प्राप्त हुआ। कोंकण रेलवे विश्व भर में सफलतापूर्वक संपन्न होने वाली सबसे कठिन रेलवे परियोजनाओं में से एक है। अगले प्रातः 6.00 बजे हम ठाणे में थे। हमारी यात्रा के अगले चरण के लिए हम समय पर थे। ठाणे से इगतपुरी तक की हमारी 103 किमी लंबी यात्रा गोरखपुर एक्सप्रेस में बहुत ही कम समय में हो गई। इस यात्रा में कोई विशेष, ध्यानाकर्षित करने वाली बात नहीं थी केवल इसके कि कसारा के आस-पास जंगल के सभी पेड़ जला दिए गए थे। यह देखना बहुत निराशा जनक था कि वहाँ सब कुछ बंजर और काला हो चुका था। 

9.15 बजे हम इगतपुरी में थे। हमने रेलवे स्टेशन पर ही हल्का नाश्ता किया और फिर धम्म गिरि की ओर प्रस्थान किया। धम्म गिरी रेलवे स्टेशन से केवल 1.50 किमी दूर है। हालांकि कई ऑटो-रिक्शा वहां उपलब्ध थे, हमने पैदल चलने का फैसला किया क्योंकि हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था और प्रातः क़ालीन समय बहुत सुहावना था। 

धम्म गिरि
हम लगभग 10.15 बजे धम्म गिरि में थे।

हम पहले से ही जानते थे कि शिविर के दौरान पुरुष और महिलाएं अलग-अलग रहते हैं और उनके बीच बिल्कुल बातचीत नहीं होती है। वहां पहुंचने पर सबसे पहले यह पाया कि हमें वहीं से अपने-अपने अलग स्वागत केंद्र पर जाना था।

जैसे ही मैंने पुरुषों के लिए निर्धारित स्वागत क्षेत्र में कदम रखा, वहां के एक व्यक्ति ने मुझे वह स्थान दिखाया  जहाँ सभी अपना सामान रख सकते थे। उन्होंने मुझे अपना सामान वहाँ जमा करने की सलाह दी और वहाँ कई लंबी कतारों में से एक की ओर इशारा किया। मुझे अपने पंजीकरण फॉर्म की प्रति और एक पहचान प्रमाण-पत्र के साथ उस कतार में शामिल होना था। 

मुझे ऐसा लगा कि पंजीकरण प्रक्रिया में बहुत समय लग रहा था। विभिन्न काउंटरों पर लंबी कतारें लगी थीं। ठीक 11.00 बजे समस्त पंजीकरण कार्यवाही थम गयी क्योंकि यह धम्म गिरि में दोपहर के भोजन का समय था। उस समय उस स्थान पर उपस्थित लोगों के बीच आपसी बातचीत से पता चला कि यद्यपि हम सब तब तक औपचारिक रूप से शिविर हेतु पंजीकृत नहीं थे फिर भी वहाँ सब भोजनालय में जा कर भोजन कर सकते थे।

भोजन के समय, पुरुषों के लिए भोजनालय में, मुझे धम्म गिरि में परोसे जाने वाले भोजन का पहला स्वाद मिला।


भोजन के बाद पंजीकरण की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ की गई। कुल मिलाकर, हमें पांच अलग-अलग काउंटरों के सामने पांच अलग-अलग कतारों में खड़ा होना था, एक के बाद एक।


मुझे पंजीकरण प्रक्रिया थोड़ी धीमी और अक्षम लगी। अन्यथा, अधिकांश अन्य पहलुओं में धम्म गिरी में प्रशासन ठीक-ठाक ही था। 

धम्म गिरी के बारे में अधिक जानकारी
इससे पहले कि मैं अपने शिविर के विषय में और आगे लिखूँ, यहाँ मैं धम्म गिरी के कुछ प्रासंगिक पहलुओं पर प्रकाश डालना चाहूँगा। यह वर्णन न केवल शून्य दिवस के पंजीकरण प्रक्रिया का है, बल्कि धम्म गिरी में अन्य दिनों का भी है।


इस शिविर  में भाग लेने के लिए 300 से अधिक पुरुष और लगभग 225 महिलाएं थीं। हम में से अधिकांश नए साधक थे, परंतु पुराने साधक भी बड़ी संख्या में थे। धम्म गिरी की परिभाषा में पुराने साधक वो नहीं होते जिनकी आयु अधिक हो, बल्कि वो जिन्होंने गोयन्काजी अथवा उनके सहायक आचार्यों के साथ एक 10-दिवसीय शिविर पूर्ण किया है.


धम्म गिरी में इस शिविर हेतु प्रशासनिक व्यवस्था उच्च कोटि की थी। वहाँ स्थायी कर्मचारी लगभग नगण्य है। अन्य सभी जो वहाँ की सुस्थापित प्रणाली को सार्थक रूप से चलाते हैं वे सब स्वयंसेवक होते हैं, जिन्हें धम्म सेवक कहा जाता है। धम्म सेवक वो होते हैं जिन्होंने पूर्व में इसी प्रकार के एक या अधिक शिविर में भाग ले चुके हैं और अब नि:शुल्क सेवा प्रदान करते हैं। 

पूरे परिसर को इस तरह से विभाजित किया गया है कि एक बार शिविर प्रारम्भ हो जाय तो पुरुषों और महिलाओं के बीच बिल्कुल बातचीत नहीं हो सकती है। पुरुषों और महिलाओं के अलग-अलग भोजनालय,  ध्यान कक्ष और रहने का आवास है।


धम्म गिरी में अत्यंत सादा शाकाहारी भोजन दिया जाता है। परोसे गए भोजन के आहार-पुष्टि में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होती है । इसे गर्म, असीमित मात्रा में प्रदान किया जाता है। भोजनालय में भोजन के लिए निर्धारित समय का बहुत सख्ती से पालन किया जाता है। समय से एक मिनट पहले भी भोजन मिलने की कोई संभावना नहीं है। नाश्ता प्रातः 06:30 बजे परोसा जाता है। अपराह्न का भोजन का समय 11.00 से 11.45 बजे तक है।


दिन का अंतिम भोजन  सायंकाल 5.00 बजे का  नाश्ता होता है। सभी 11 दिन हमें फल एवं हल्का मसाला युक्त मुरमुरे दी गयी। पुराने साधकों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे शाम के नाश्ते में केवल नींबू पानी का सेवन करें। 

हमें जिस आवास में रहना था वह साफ-सुथरा है। उसमें कोई बहुत तड़क-भड़क नहीं है । 10 दिनों के लिए जिन बुनियादी वस्तुओं की आवश्यकता हो सकती है, वह वहाँ उपलब्ध है। कुछ कमरे ऐसे हैं  जिनमे एक-एक साधक ही रह सकते हैं  परंतु ऐसे भी कमरे हैं जिनमे दो या अधिक साधक एक साथ रहते हैं। मुझे यह नहीं स्पष्ट हुआ कि किन साधकों को अकेले रहने दिया जा रहा था और किन्हे कमरा बाँटना पड़ रहा था। 


VIA (वि वि वि) ने सौर पैनल स्थापित करने में काफी निवेश किया है। अतः साधक आवास शौचालयों में हर सुबह लगभग डेढ़ घंटे के लिए गर्म पानी उपलब्ध होता है।


VIA (वि वि वि) में साधक धोबी की सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। कपड़ों को धुल कर वापस होने में 24 घंटे लगते हैं। धोबी हर कपड़े की धुलाई के लिए 12 रुपये लेता है। धोबी द्वारा पंजीकरण प्रक्रिया के दौरान 250 रुपये की अग्रिम राशि एकत्र की जाती है। दसवें दिन शेष राशि बहुत ही व्यवस्थित रूप से वापस कर दी जाती है। प्रत्येक साधक को धोबी द्वारा एक पहचान टैग दी जाती है। साधक अपने धुलाई वाले कपड़े उस पहचान टैग में बाँधकर भोजनालय के पास विशेष रूप से सीमांकित स्थान पर प्रातः 6.30 और 7.45 बजे के बीच जमा कर सकते हैं। अगले दिन शिविर कार्यालय के पास से धुले हुये कपड़े रखे पाए जाते हैं। धोबी सेवा नौवें दिन तक उपलब्ध है। 


पंजीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत, छात्रों को अपने सभी मूल्यवान वस्तु जमा करवाना पड़ता है। इसमें मोबाइल फोन  भी शामिल हैं। इन्हें एक लिफाफे में डालकर सील कर दिया जाता है। वही लिफाफा शिविर के दसवें दिन आपको लौटाया जाता है। चूंकि 09 फरवरी 2019 के ई-मेल में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि मोबाइल फोन  शिविर के अवधि के लिए जमा किया जाना था, इसलिए मैंने अपने मोबाइल फोन को घर से नहीं ले जाने का फैसला किया। अर्थात  लगभग 13 दिनों तक बिना मोबाइल फोन या किसी भी तरह की इलेक्ट्रॉनिक सम्पर्क के रहना। न फोन, न लैपटॉप, न इंटरनेट। कोई रेडियो नहीं। कुछ भी नहीं। क्या यही है  डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन? जब मैंने अपने लिफाफे जिसमें मैंने अपनी नकदी और अपने क्रेडिट / डेबिट कार्ड और पहचान पत्र डाला था, को संबंधित धम्म सेवक को सौंपा, तो उन्होंने इसे बाहर से अपनी उंगलियों से महसूस किया। उन्हें बहुत आश्चर्य हो रहा था और उन्होंने अति विनम्रता से मुझे अपने मोबाइल को भी उस लिफ़ाफ़े में डालने के लिए कहा। जब मैंने उन्हें स्पष्ट किया कि मेरे पास मोबाइल नहीं है, तो न केवल उन्हें बल्कि मेरे पीछे कतार में खड़े अन्य कुछ लोगों को भी अविश्वास की एक प्रारंभिक प्रतिक्रिया हुई होगी। मुझे यकीन है कि उनमें से कुछ ने यह निष्कर्ष लगाया होगा कि मैं असत्य बोल रहा था और अपने मोबाइल फ़ोन को मैंने कहीं छिपा रखा होगा, जबकि कुछ अन्य लोगों ने महसूस किया होगा कि यहां कोई आदि मानव आ गया है।




पंजीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत, प्रत्येक छात्र को एक  ग्रूप (समूह) आवंटित किया जाता है। यह एक नियमित स्कूल में एक वर्ग के "खंड" की तरह है। 

पंजीकरण और उसके बाद
अब, पुनः लौटें शून्य दिवस और पंजीकरण प्रक्रिया के लिए। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, मुझे पांच अलग-अलग कतारों में खड़ा होना पड़ा। अधिकांश कतारें काफी लंबी थीं और उनमें प्रतीक्षा करते-करते  लोगों के व्यवहार को देखने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ। जैसा कि कई बार होता है, कुछ अधिक चटकी दिखाने वाले भी थे जो कतार के बीच में शामिल हो जाते थे। लेकिन अधिकांश व्यक्ति संयम बरत रहे थे और एक-दूसरे की सहायता कर रहे थे। क्या यह सामान्य व्यवहार था? या, क्या यह एक ऐसी जगह पर होने का प्रभाव था जहाँ हम सभी और श्रेष्ठ व्यक्ति बनने के लिए आए थे?

सभी पंक्तियों में खड़े होने के उपरांत, मुझे प्रसन्नता यह हुई कि अब मैं औपचारिक रूप से इस शिविर का साधक बन गया था।

मेरा पंजीकरण क्रमांक MN-487 था, मुझे समूह 3 आवंटित किया गया था, मेरा धोबी  टोकन नंबर 88 था और मेरे लिए आवंटित आवास J-17 था।
मेरा कार्ड जिसमें पूर्ण आवश्यक विवरण है 
(इसका निचला हिस्सा जिसमें नाम, समूह और आवास का विवरण है, धम्म हॉल में बैठने के स्थान पर गद्दे के नीचे रखा जाता है)


मैंने अपना सामान लिया और मुझे आवंटित आवास में चला गया। स्नान के बाद, मैं उस कमरे में अगले 10 दिन आराम से रह सकूँ, उस प्रकार से अपनी व्यक्तिगत वस्तुओं को फिर से व्यवस्थित किया।

शाम को जब मैं नाश्ते के समय भोजनालय में गया, तो यह पाया कि वह सार्वजनिक क्षेत्र जहाँ पुरुष एवं महिलाएँ दोनों जा सकते हैं अभी भी खुला था। वहाँ जाने पर मैंने देखा कि संध्या भी वहीं थी। हमने प्रातः से उस समय तक अपने-अपने पंजीकरण एवं अन्य प्रक्रियाओं से एक दूसरे को अवगत कराया। संध्या ने मुझे बताया कि सुश्री ईशा  गुलाटी, जो गोरखपुर एक्सप्रेस में हमारी सह-यात्री थीं और इगतपुरी में हमारे साथ रेलगाड़ी से उतरीं थीं, वह भी यहाँ थीं। रेल यात्रा के दौरान हमें पता नहीं था कि वह भी धम्म गिरी ही जा रही है। उन्हें और उनके हम उम्र मैंने कई युवाओं को शिविर में पंजीकरण कराते हुए देखा था। इसने मेरी यह धारणा को असत्य प्रमाणित कर दिया कि विपश्यना शिविर में युवक-युवतियाँ नहीं भाग लेते हैं।

अब अगले कुछ दिनों के लिए संध्या को अलविदा कहने का समय था। 
आगे देखते हैं क्या होता है।


निर्देश, आर्य मौन और धम्म हॉल
शून्य दिवस  को भोजनालय में सायंकाल 6.30 बजे शिविर से सम्बंधित निर्देश दिए जाते हैं। हालाँकि उस समय वहाँ उस निर्देश सत्र का संचालन करने के लिए एक धम्म सेवक होते हैं, परंतु उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। वह एक ऑडियो उपकरण को चालू करते हैं और श्री सत्यनारायण गोयंका जी की आवाज आती है। जैसे-जैसे  हम शिविर में आगे बढ़ते चले गए मुझे ज्ञात हुआ कि इन शिविरों में पूरी तरह से केवल श्री गोयंका जी का व्यक्तित्व का आभास होता है। उन्हें अक्सर पुराने  साधकों द्वारा पूज्य आचार्यजी कह कर भी सम्बोधित किया जाता है।


श्री गोयंका जी के पाठ हिंदी और अंग्रेजी दोनों में हैं। इस प्रकार, हममें से अधिकांश भारतीयों के लिए भाषा की कोई समस्या नहीं है। मुझे यह भी पता चला कि अन्य केंद्रों में ध्यान सिखाने के लिए स्थानीय भाषा का उपयोग भी किया जाता है।


निर्देश सत्र की समाप्ति के साथ ही आर्य मौन प्रारम्भ हो जाता है। अब दसवें दिन तक किसी से भी बात नहीं होगी, सिवाय सहायक प्राचार्य के, वह भी केवल प्रश्नोत्तरी के समय। शारीरिक संकेतों से या लिख-पढ़कर विचार-विनिमय करना भी वर्जित है। आँख से इशारा भी नहीं किया जा सकता है। हाँ, यदि बहुत आवश्यक हो, तो धम्म सेवकों से भी बात कर सकते हैं। इस प्रकार, आर्य मौन जो एक दुर्लभ अनुभव है, यह अब प्रारम्भ हो चुका है। सारा ध्यान अब केवल ध्यान सीखने पर है।


हमें अपने समूहों के अनुसार भोजनालय से बाहर जाने के लिए कहा गया और कुछ धम्म सेवक हमें चुपचाप हमारे समूह ध्यान हॉल में ले गए।


धम्म हॉल नामक ध्यान हॉल में सभी छात्रों के बैठने की व्यवस्था है। शून्य दिवस पर जब सभी साधकों को धम्म सेवक हमारे धम्म हॉल में ले गए, तो उस हॉल के धम्म सेवक ने हमें अपने-अपने बैठने के स्थानों से अवगत कराया। बैठने का स्थान फर्श पर रखे गद्दे पर है। अगले 10 दिनों के लिए उसी आवंटित स्थान पर ही हमें बैठना था। हर स्थान के गद्दे के नीचे एक खाँचा होता है जिसमें साधक अपने पंजीकरण कार्ड का निचला हिस्सा, जिसमें कि साधक का नाम, समूह संख्या और कमरे का नंबर लिखा होता है, काट कर रखते हैं ।

यदि किसी साधक को पीठ-पीड़ा की समस्या है और / या वह फर्श पर बैठने में असमर्थ है, उनके लिए गद्देदार प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठने का विकल्प है, बशर्ते इसका उल्लेख ऑनलाइन पंजीकरण के दौरान किया गया हो।


10-दिवसीय पाठ्यक्रम के दौरान, हर साधक को प्रत्येक दिन लगभग 10-12 घंटे फर्श पर, पाल्थी मारकर, पीठ और गर्दन सीधे रखकर बैठने की आवश्यकता होती है। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। जो इस प्रकार के शिविर में भविष्य में भाग लेने के इच्छुक हैं, मैं उनसे यही अनुग्रह करता हूँ कि वे हर दिन कुछ घंटों के लिए फर्श पर बैठने का अभ्यास अवश्य करें, और जितना संभव हो उतने समय के लिए पाल्थी मार कर ही बैठें।


समूह-3, जिसमें मैं था, उसमें लगभग 60 साधक थे। 10 पुराने साधक थे। वे सभी पहली पंक्ति में बैठे थे, सहायक शिक्षक के निकटतम। 60 में से केवल छह को कुर्सियों पर बैठाया गया। कुर्सियों के लिए अनुरोध करने वाले सभी छह नए साधक थे।


अब, देखते हैं कि शून्य दिवस पर धम्म हॉल में क्या होता है। 

अब लगभग रात्रि के 7.30 बजे हैं। सभी साधक अपने-अपने स्थान में विराजमान हो गए हैं। अब समूह के सहायक आचार्य  समूह का कार्यभार सम्भालते हैं। वास्तव में, श्री गोयंका जी, जो कि ऑडियो द्वारा उपस्थिति हैं, सत्र का संचालन करते हैं। सहायक आचार्य की एक सीमित भूमिका है, ऑडियो सिस्टम को चालू करना और विशिष्ट प्रशासनिक निर्देशों को पारित करना।


श्री गोयंका जी हमें पहला कदम, आनापान ध्यान/साधना से परिचित कराते हैं। सत्र लगभग रात्रि 9.00 बजे समाप्त होता है और शून्य दिवस समाप्त हो जाता है। अब अपने अपने कमरों में जा कर सो जाएँ । रात्रि 9.30  बजे रोशनी बंद।


आज का दिन काफ़ी लम्बा, रोमांचकारी और गतिविधियों से पूर्ण रहा।


दैनिक दिनचर्या 
अगले 10 दिनों के लिए दैनिक दिनचर्या निम्नानुसार होगी: -


समय 
गतिविधि
प्रातः 4.00
सुबह की जगाने की घंटी
प्रातः 4.30 से 6.30
हॉल मे अथवा अपने निवास पर ध्यान
प्रातः 6.30 से 8.00
नाश्ता 
सुबह 8.00 से 9.00
ध्यान कक्ष(हॉल))मे सामूहिक साधना
सुबह 9.00 से 11.00
आचार्यों की सूचना अनुसार हॉल मे अथवा निवास स्थान मे ध्यान
11.00 से 12.00 दोपहर
दोपहर का भोजन 
12 दोपहर-1.00
विश्रांती और आचार्यों से प्रश्नोत्तर 
1.00 से 2.30 
हॉल मे अथवा निवास स्थान मे ध्यान
2.30 से 3.30 
हॉल मे सामूहिक साधना
3.30 से 5.00 
आचार्यों की सूचना अनुसार हॉल मे अथवा निवास स्थान मे ध्यान
5.00 से 6.00 
नाश्ता 
6.00 से 7.00 
हॉल मे सामूहिक साधना
7.00 से 8.15 
हॉल मे आचार्यों के प्रवचन
8.15 से 9.00
हॉल मे सामूहिक साधना
9.00 से 9.30 
हॉल मे प्रश्नोत्तर का समय
9.30
अपने कमरे मे विश्रांती और रोशनी बंद




चलिए अब उपरोक्त गतिविधियों एक-एक कर देखें। 


सुबह की जगाने की घंटी। धम्म गिरी में प्रातः 4.00 बजे सभी को जगाने के लिए जो ध्वनि सुनाई पड़ती है, उससे यह प्रतीत होता है कि परिसर में कहीं एक विशाल घंटा है जिसे बजाया जाता है। चूँकि 4.00 बजे जगना हर किसी के लिए सरल नहीं होता, कुछ धम्म सेवकों को यह उत्तरदाइत्व दिया जाता है कि वे साधकों के आवास क्षेत्रों में घंटी बजते हुए जाएँ। उनके हाथ में उस प्रकार की छोटी घंटी होती है, जैसा कि भारतीय मंदिरों में पुजारियों द्वारा उपयोग की जाती हैं। स्मरण रहे कि आर्य मौन लागू है और किसी प्रकार की बातचीत नहीं हो सकती है। यह प्रातः जगाने का एक प्यारा उपाय है।

4.30 बजे धम्म हॉल में पहला ध्यान सत्र प्रारम्भ होता है। सहायक आचार्य लगभग 5.30-5.40 बजे हॉल में प्रवेश करते हैं। तब तक धम्म हॉल में केवल साधक और एक-दो धम्म सेवक होते हैं। मैंने अनुभव किया कि हमारे समूह के कुछेक साधक इस सत्र में धम्म हॉल में अनुपस्थित रहते थे। लगभग 6.00 बजे सहायक आचार्य ऑडियो प्रणाली चालू कर देते हैं और 6.30 बजे तक श्री गोयंका जी के स्वर में कुछ पाठ सुनाए जाते हैं।

इसके बाद होता है नाश्ता। यह वो भी समय है जब धोबी के सेवाओं को उपलब्ध किया जा सकता है, जिसका कि वर्णन मैं पहले कर चुका हूं। 

दिन का पहला समूह ध्यान सत्र 8.00 बजे प्रारम्भ होता है। प्रति दिन ऐसे तीन सत्र होते हैं। समूह ध्यान सत्र में हर साधक को अवश्य उपस्थित होना पड़ता है। समूह ध्यान सत्र श्री गोयंका जी के निर्देशों के साथ शुरू होते हैं, जिसमें लगभग चार से पाँच मिनट लगते हैं। तत्पश्चात पूर्ण मौन। फिर लगभग 50 मिनट के बाद उन्हीं की  आवाज़ लौट आती है। उनके स्वर में कुछ श्लोक नुमा शब्द/आशीर्वाद इत्यादि के पश्चात, तीन बार "भवतु सब्ब मंगलम्"। यह हमारे लिए सत्र समाप्त होने का संकेत था।

चौथे दिन उस समूह सत्र में जब हमें विपश्यना पहली बार बताया गया, उस सत्र में हमें अधिष्ठान के बारे में भी बताया गया। तब तक ध्यान सत्र के समय हम किसी भी तरह फर्श पर रखे गद्दों पर बैठते थे, जैसा कि हमें  सुविधाजनक लगे। कुछ समय के लिए, पाल्थी मारकर, कुछ समय पैरों को आगे की ओर इत्यादि, किसी भी तरह बैठे रहते थे। यदि हम एक मुद्रा में बैठे हुए ठाक जाते, तो अन्य मुद्रा अपना लेते। हम अपने हाथों को हिलाते और कभी-कभी अपनी आँखें भी खोल लेते। लेकिन सत्र के दौरान जब विपश्यना की तकनीक शुरू की गई, अधिष्ठान की अवधारणा भी बताई गयी। इसका अर्थ यह था कि सभी समूह सत्रों में हमें अपने हाथों को हिलाए बिना पूरे एक घंटे तक, आँखें खोले बिना, एक ही मुद्रा में बैठे रहने का प्रयास करना। 

9.00 से 11.00 बजे का सत्र। इस सत्र में  सहायक आचार्य  थोड़े समय के लिए उपस्थित रहते हैं। कुछ दिन वे निर्देश पारित करते हैं कि हम या तो उसी हॉल में ध्यान करना जारी रख सकते हैं या अपने-अपने आवंटित आवास में लौट कर वहाँ ध्यान कर सकते हैं। अन्य दिनों में, सहायक आचार्य लगभग आठ से 10 साधकों को एक साथ बुलाते हैं। वह पता लगते हैं कि ध्यान से सम्बंधित निर्देशों को आत्मसात करने में किसी प्रकार की समस्या तो नहीं हो रही है और यदि साधकों को इस विषय में कोई अन्य जानकारी की आवश्यकता हो, इन सब पर चर्चा होती है। इस समय अन्य साधक ध्यान करना जारी रखते हैं।

दोपहर के भोजन के बाद का पहला ध्यान सत्र, जो कि 1.00 से 2.30 बजे तक होता है, ठीक उसी तरह होता है जैसे दिन का पहला सत्र जो कि 4.30 बजे से होता है, परंतु इस सत्र के लिए हॉल में सहायक आचार्य नहीं होते हैं।


इसके बाद दूसरा समूह ध्यान सत्र 2.30 से 3.30 बजे तक होता है।


3.30 से 5.00 बजे तक का सत्र 9.00 से 11.00 बजे के सत्र के समान होता है। 9.00 से 11.00 बजे के सत्र में जिन साधकों को आचार्य-साधक वार्तालाप का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था, केवल उनके लिए इस सत्र में यह वार्तालाप करायी जाती है। अन्यथा, सहायक आचार्य द्वारा, यह विकल्प दिया जाता है कि वहीं धम्म हॉल में  साधना करते रहें या अपने आवंटित आवास में जा कर करें।


दिन का तीसरा और अंतिम समूह ध्यान सत्र 6.00 से 7.00 बजे तक होता है। 

हर शाम 7.00 बजे से श्री गोयंका जी का एक वीडियो प्रवचन होता है। हममें से जो अंग्रेजी में प्रवचन सुनने के इच्छुक थे, वे दूसरे हॉल में चले जाते थे।

अंग्रेजी में जो प्रवचन रेकोर्ड गिया गया था, यह स्पष्ट पता चलता था कि वह कहीं विदेश में चलाए गए शिविर के समय किया गया था।

प्रत्येक दिन का प्रवचन उस दिन जो सिखाया गया था, उसका बहुत संक्षिप्त सारांश के साथ प्रारम्भ होता है। फिर वह हमें गौतम बुद्ध, जिन्होंने विश्व को विपश्यना की तकनीक दी थी, के जीवन और शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराते हैं। इस तरह वे हमें अभ्यास करने के लिए अगले कदम की ओर ले जाते हैं और  अंत में प्रथागत तीन बार "भवतु सब्ब मंगलम" के साथ प्रवचन समाप्त हो जाता है।

इसके उपरांत हम दिन के अंतिम सत्र जिसका कि समय 8.30 से 9.00 बजे होता है के लिए अपने समूह धम्म हॉल में लौट जाते थे। जो कुछ समय पूर्व प्रवचन में नया सिखाया गया था उसका अभ्यास इस सत्र में किया जाता है।


आपने दैनिक दिनचर्या में उल्लेखित दो अन्य गतिविधियों पर ध्यान दिया होगा। 12.00 से 12.30 बजे तक सहायक आचार्य के साथ साक्षात्कार उन साधकों के लिए एक अवसर होता है जो किसी भी प्रशासनिक मुद्दों के लिए सहायक आचार्य से मिलने की इच्छा रखते हैं। रात्रि 9.00 से 9.30 बजे हॉल में प्रश्नोत्तर का समय, यह सत्र धायन के अभ्यास की तकनीक के सम्बंध में सहायक आचार्य से चर्चा का समय होता है। 

आनापान ध्यान
शून्य दिवस को धम्म हॉल में पहले पाठ के रूप में आनापान की प्रथा प्रारम्भ की गई। पहले तीन दिन के सभी सत्र और चौथे दिन दोपहर के भोजन से पहले के सभी सत्र में आनापान का अभ्यास किया जाता है।

चौथे दिन भोजन के पश्चात, सत्रों का थोड़ा पुनर्निर्धारण होता है।

दोपहर के भोजन का पहला सत्र जो अन्य दिनों में 1.00 से 2.30 बजे तक होता है, उसमें आधे घंटे की कटौती हो जाती है। समूह ध्यान जो कि सामान्य रूप से 2.30 से 3.30 बजे के बीच होता है, को उस दिन 2.00 से 3.00 बजे तक किया जाता है।

विपश्यना
चौथे दिन 3.00 बजे वास्तविक विपश्यना ध्यान का पहला सत्र शुरू होता है। चूंकि  विपश्यना का यह सर्वप्रथम सत्र है, यह एक लम्बा सत्र है और 5.00 बजे तक चलता है

तत्पश्चात अंतिम दिन तक सभी ध्यान सत्रों में विपश्यना का अभ्यास किया जाता है। दिन-ब-दिन श्री गोयंका जी हमें विपश्यना के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराते हैं।

जैसा कि आपने देखा होगा, मैंने आनापान और विपश्यना की तकनीकों के विषय में एक भी शब्द नहीं लिखा है। मैंने ऐसा जानबूझकर किया है।

यदि आप पहले से ही आनापान और विपश्यना की तकनीकों को जानते हैं, तो यहां इसके बारे में लिखने का कोई औचित्य नहीं है।

यदि आप आनापान और विपश्यना की तकनीकों को नहीं जानते हैं और उन्हें सीखने में कोई रुचि नहीं है, तो यहां इसके बारे में लिखने का कोई औचित्य नहीं है।

यदि आप आनपान और विपश्यना की तकनीकों को नहीं जानते हैं, लेकिन उन्हें सीखने के लिए उत्सुक हैं, तो मुझे लगता है कि 10-दिवसीय शिविर में भाग लेकर श्री गोयंका जी के शब्दों के माध्यम से सीधे सीखना सबसे अच्छा रहेगा। 

दसवें दिन
दसवें दिन, 9.00 से 10.00 बजे तक, एक सत्र होता है जिसे मेत्ता (दूसरों के प्रति सद्भाव फैलाना) कहा जाता है। इस सत्र के बाद, आर्य मौन समाप्त हो जाता है। लेकिन साधकों को उस दिन एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करना है।


मेत्ता परिचयात्मक सत्र समाप्त होने के तुरंत बाद, सभी साधक शिविर कार्यालय की ओर तेज़ क़दमों के साथ निकल पड़े जहाँ से हमें शून्य दिवस को जमा किए गए अपने-अपने मूल्यवान वस्तुओं को वापस लेना था। धोबी  ने भी उस समय अग्रिम राशि 250 रुपये में बाक़ी राशि लौटा दी।


मुख्य कार्यालयों के पास के सार्वजनिक क्षेत्रों को खोल दिया गया था और अब महिलाएँ एवं पुरुष एक दूसरे से मिल सकते थे, और केवल वहीं मिल सकते थे। एक-दूसरे के विशिष्ट क्षेत्र में अभी भी जाना वर्जित था।

जिन साधकों को मौद्रिक दान देने की इच्छा थी, उनके लिए दान काउंटर का आयोजन किया गया था।

हम में से कुछ को यह संदेश प्राप्त हुआ कि यदि हमारे पास शिविर सम्बंधी कोई प्रतिक्रिया (feedback) हैं, तो हम संबंधित अधिकारी से मिल सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं। मुझे लगा कि शून्य दिवस पर पंजीकरण प्रक्रिया के बारे में अपनी राय व्यक्त करने का यह अच्छा अवसर है और मैं निर्धारित समय पर सम्बंधित अधिकारी के कार्यालय में चला गया। परंतु वहाँ मैंने यह पाया कि यह महत्वपूर्ण क्रिया बहुत अव्यवसायिक एवं अनौपचारिक रीति से किया गया, जिस से मुझे बहुत निराशा हुई।
आर्य मौन के अंत के बाद दसवें दिन संध्या के साथ
(छायाचित्र सुश्री ईशा गुलाटी द्वारा)


आर्य मौन समाप्ति के पश्चात दसवें दिन, दिनचर्या में केवल समूह ध्यान सत्र (2.30 से 3.30 बजे और 6.00 से 7.00 बजे तक) और प्रवचन 7.00 बजे होते हैं। अन्य सत्र नहीं होते हैं। हमें धम्म गिरी के केंद्रीय पगोडा दिखाया गया। यह एक विशाल, शानदार संरचना है, जिसकी वास्तुकला ने मुझे लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में स्थित कुछ बौद्ध मठों की याद दिला दी। पगोडा के अंदर, सैकड़ों कोशिकाएँ हैं जहाँ साधक व्यक्तिगत रूप से ध्यान कर सकते हैं। हमें बताया गया कि जब सहायक आचार्य  धम्म हॉल में या आवंटित आवास में स्वयं ध्यान करने का विकल्प देते हैं, तो केंद्रीय पगोडा में कोशिकाओं का उपयोग करने का भी विकल्प होता है। हालाँकि, जब हमारा शिविर चल रहा था, तब केंद्रीय पगोडा  में बड़े पैमाने पर मरम्मत और रखरखाव की गतिविधियाँ चल रही थीं। इस कारण हमें ध्यान के लिए पगोडा कोशिकाओं का उपयोग करने के अवसर प्राप्त नहीं हुआ।


दिन के अंत में, हमें एक बहुत छोटी वीडियो वृत्तचित्र, MITRA उपक्रम देखने के लिए आमंत्रित किया गया। MITRA प्रोजेक्ट महाराष्ट्र सरकार, विपश्यना अनुसंधान संस्थान, इगतपुरी और कुछ विपश्यना केंद्रों की एक संयुक्त पहल है। MITRA (Mind In Training for Right Awareness) का उद्देश्य छात्रों का एक सर्वांगीण मानसिक, शैक्षणिक और व्यक्तित्व विकास है, जो कि आनापान  ध्यान के नियमित अभ्यास से उनकी जागरूकता और एकाग्रता के स्तर में सुधार करता है। 

ग्यारहवाँ दिन
श्री गोयंका जी द्वारा अंतिम वीडियो प्रवचन, ग्यारहवें दिन प्रातः 4.25 बजे शुरू होता है। इस प्रवचन में हमें वे अपनी यात्रा से साझा करते हैं और साथ ही साधकों को घर लौटने के बाद भी विपश्यना का अभ्यास करते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसके बाद धम्म हॉल में अंतिम ध्यान सत्र आयोजित किया जाता है।


हमने उस सुबह धम्म गिरि में अपना आखिरी नाश्ता किया।


अब VIA (वि वि वि) और धम्म गिरि को अलविदा कहने का समय आ गया था।


हम में से अधिकांश में उपलब्धि की भावना थी। निश्चित रूप से इस प्रकार के 10-दिवसीय शिविर को सफलतापूर्वक करना सरल नहीं है। शिविर की कठोरता के कुछ कारक: -
सर्वप्रथम, किसी से कोई बात नहीं करना।
द्वितीय, रात का खाना नहीं।
तृतीय, 10 निरंतर दिन, प्रति दिन लगभग 11 घंटे ध्यान करना।
चतुर्थ,  अधिष्ठान। प्रति दिन 12-13 घंटे फर्श पर बैठना अपने आप में बहुत कठिन कार्य होता है। लेकिन अगर हम अधिष्ठान के पालन की आवश्यकता को जोड़ते हैं - बैठते समय आसन नहीं बदलना, और हाथों को न हिलाना  - तो कठिनाई का स्तर कई गुना अधिक लगता है।
कोई आश्चर्य नहीं, शिविर से कुछ साधक बीच में ही शिविर छोड़ कर चले गए।

लेकिन आनापान और विपश्यना ध्यान की तकनीक सीखने में बहुत आनंद का अनुभव होता है। इनमें आपको बदलने की क्षमता है। वो 10 दिन का शिविर आपको एक प्रकार से अपने नित्य के दौड़-भाग वाली दिनचर्या में  विश्राम लेने बाध्य करता है,  आपको अपने आप में देखने का और आपको और अच्छा इंसान बनने का संकल्प लेने में सहायता करते हैं। शिविर के दौरान हम जो दो बहुत महत्वपूर्ण शब्द सुनते रहते हैं, वे हैं ‘अनिच्च’ (संस्कृत में अनित्य) और ‘समता’।


ग्यारहवें दिन जब मैं बाहर सार्वजनिक क्षेत्र में बैठे संध्या के लिए प्रतीक्षा कर रहा था मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब मैंने यह पाया कि शिविर समापन के पश्चात उधर से जाने वाले सभी साधकों के चेहरे से शांति और संयम झलक रहे थे। 



सह-यात्री
मेरे समूह में लगभग 60 साधक थे। हम 10 दिनों के लिए एक-दूसरे के आस-पास लगभग 15 से 16 घंटे बिता रहे थे, परंतु हम एक-दूसरे से आर्य मौन की समाप्ति तक परिचित नहीं थे।


आर्य मौन की समाप्ति के उपरांत जो सीमित समय था, उसमें मैं अपने समूह के कुछ साधकों के साथ बातचीत कर सका। उनमें से प्रत्येक से मैंने कुछ अच्छा और दिलचस्प सीखा।


पुराने साधकों में श्री बाबूराय पई थे जो मंगलुरु निवासी सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या यह आपका दूसरा शिविर है, तो उनके उत्तर ने मुझे स्तब्ध कर दिया। यह उनका दूसरा शिविर नहीं था, न ही तीसरा और न ही चौथा। यह उनका 16 वां (हाँ, सोलहवाँ) विपश्यना शिविर था। निःसंदेह  प्रेरणादायक।


एक पुराने साधक श्री देबजीत को अप्रैल 2019 में भारतीय प्रबंध संस्थान अहमदाबाद में PGPX कार्यक्रम के 2019-20 सत्र में शामिल होना था। उनकी करियर प्रोफ़ाइल उनकी उम्र के एक युवा के लिए असाधारण है। लेकिन जीवन में उनकी प्राथमिकताएं बहुत स्पष्ट हैं। वह अपने हम उम्र उन साथियों से भिन्न हैं जो केवल धन के लोभ में अपनी ज़िंदगी फूँक रहें हैं.


एक आयरलैंड निवासी पुराने साधक को उडुपी-मणिपाल, मंगलूरु और गोकर्ण के बारे में इतना अधिक ज्ञान था, कि मुझे, जो इस क्षेत्र का मूल निवासी हूँ को भी नहीं पता था।


नए छात्रों में, सबसे कम उम्र के, भिवंडी निवासी श्री प्रवीण शेट्टी एक उभरते हुए फिल्म संपादक हैं।


हमारे ही समूह में नवी मुंबई निवासी युवा एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के डॉ। बिश्नोई थे जो कि अभी हाल में मेडिकल कॉलेज से निकले थे। मैंने उन्हें सेना चिकित्सा कोर (ए एम सी) में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। आशा करता हूँ कि वे सेना में बतौर चिकित्सक भर्ती हों।


श्री पीयूष अग्रवाल ने भारतीय प्रबंध संस्थान रोहतक से एम बी ए की पढ़ाई पूरी की थी। उन्हें अपने दीक्षांत समारोह के लिए  शिविर के उपरांत रोहतक पुनः जाना था। उन्हें पहले से ही कैंपस प्लेसमेंट के जरिए नौकरी मिल चुकी थी।


मुंबई में सेवारत एक सत्र न्यायाधीश जो हमारे समूह में थे, से भी  मेरा परिचय हुआ।


श्री जितेश मेध मुंबई के एक युवा, गतिशील आई टी पेशेवर हैं।


श्री कलिटा गुवाहाटी, असम से हैं। लम्बे बालों से बनी उनकी चोटी इतनी अछी है और उन्होंने उसकी देखभाल इतनी अच्छी तरह की है कि उसे देखकर अनेक युवा महिलाओं को हीन भावना हो जाएगी।


श्री कृष्णा अल्गावे, एक सेवानिवृत्त शिक्षाविद, जो मूल रूप से धमतरी के थे, जिन्होंने रायपुर में पढ़ाई की थी और उन्होंने गोंदिया और नागपुर में सेवा की थी, अब मुंबई में बस गए, सबसे वरिष्ठ व्यक्ति थे जिनसे मैं धम्म गिरी में मिला था।


मेरे पड़ोसी श्री जयदीप वर्मा भी उसी शिविर में मेरे ही समूह में थे। वह एक फिल्म निर्माता और लेखक हैं, मूल रूप से चंडीगढ़, लेकिन अब मुंबई निवासी। उनके द्वारा बनाई गई कुछ फीचर फिल्में हैं हल्ला, लीविंग होम - द लाइफ एंड म्यूजिक ऑफ इंडीयन ओशन और बावरा मन। उन्होंने इंपैक्ट इंडेक्स बनाया जो आजकल क्रिकेट में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला सांख्यिकीय सूचकांक है। दसवें दिन रात्रि 10 बजे जब हम अपने धम्म हॉल के बाहर इंतजार कर रहे थे, हम भारत-पाकिस्तान संबंधों पर चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है  कि क्रिकेट खिलाड़ी श्री इमरान खान अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में आने वाले दिनों में भारत की दृष्टि से कुछ सकारात्मक कार्य करेंगे। उन्होंने मुझे एक लेख के बारे में बताया जो उन्होंने लिखा था। लिंक यहां दिया गया है:-

https://www.gulf-times.com/story/603391/Unparallelled-Imran-Khan-is-perhaps-the-greatest-a



मैं एक पूर्व सैनिक से मिला, जो ई एम ई में नायक थे। वह मेरे समूह में नहीं थे। उन्होंने पूर्व में भी 10 दिन का शिविर किया था और धम्म सेवक के रूप में भी सेवाएँ प्रदान की थी।


मैं औरंगाबाद के एक नौजवान से भी मिला, जो भारतीय सेना में शामिल होने के लिए बहुत उत्सुक थे। मैं उनकी कड़ी मेहनत और अपार सफलता की कामना करता हूं।


एक और दिलचस्प व्यक्ति जो मुझे मिले, वह एक जोशिले  नवयुवक थे, जो जानना चाहते थे कि मैंने अपनी मूंछों को कैसे बनाए रखा है। उन्होंने मुझे बताया कि वह नाइ परिवार से है। वह मुझे एक उत्पाद का नाम  बताना चाहते थे जो मूंछों को बनाए रखने में मदद करता है लेकिन वह नाम उन्हें उस समय याद ही नहीं आया और मैं उस जानकारी से वंचित रह गया।

संध्या के माध्यम से, मुझे ठाणे से इगतपुरी जाने वाली हमारी सह-यात्री सुश्री ईशा गुलाटी से भी मिला।


और इस यात्रा में हमारा मार्गदर्शन करने वाले हमारे समूह  (समूह-3) के सहायक शिक्षक श्री महेंद्र कोलटे। वे एक बहुत ही मृदुभाषी व्यक्ति हैं, जो हमेशा अत्यंत शांत रहते हैं । उनके आचरण में सदैव शांति और समरसता का अहसास प्रतीत होता था। 

शिविर के लिए शुल्क और / या अन्य शुल्क
प्रश्न यह उठता है कि इस शिविर में भाग लेने हेतु या अन्य किसी प्रकार का कितना शुल्क देना होता है? उत्तर है - शून्य। शिविर के लिए VIA (वि वि वि) द्वारा किसी भी प्रकार का कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है। यह इस भावना से कि हमसे पहले के शिविरों के साधकों द्वारा जो दान प्राप्त हुआ है उससे ही हमारे शिविर का संचालन हुआ है। यदि आप चाहें आप भी दान कर सकते हैं, ताकि कुछ साधक भविष्य के शिविरों में भाग ले सकें। दान करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं होता है ना ही सूक्ष्म / असूक्ष्म संकेत या किसी भी प्रकार का मनाना इत्यादि। जब आप दान करते हैं, तो कोई भी आपको इतनी या उतनी राशि दान करने के लिए नहीं कहता है। साधकों में यह चर्चा का विषय ही नहीं है कि कितना दान दिया जाय या किसने दान दिया या नहीं दिया। चूंकि समाज के सभी वर्गों के लोग शिविर में भाग लेते हैं, ऐसे कई लोग हैं जिनके पास दान करने का कोई साधन नहीं है। इससे संगठन को किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं है । चूँकि हम दान काउंटर पर एक छोटी कतार में खड़े थे, मैंने नोट किया कि एक साधक ने 1050 रुपये दान दिया, दूसरे ने 20000 रुपये। तो यह सब साधक की क्षमता, विश्वास और इच्छा के अनुसार है। यह दान सयाजी उ बा खिन स्मारक ट्रस्ट के नाम पर किया जाता है। दान नकद या डेबिट / क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किया जा सकता है। ऑनलाइन भुगतान भी करने का प्रावधान है।

धम्म सेवा और शिक्षक
कुछ साधकों को लगता है कि वे दान करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन धम्म हेतु अपनी सेवा उपलब्ध कराना चाहते हैं। वे भविष्य के शिविरों के लिए धम्म सेवक बन सकते हैं। मौद्रिक दान करने वाले भी धम्म सेवा कर सकते हैं। धम्म सेवकों को जो उत्तरदाईत्व  निभाना पड़ सकता है वह है भोजनालय में सेवा, धम्म हॉल को साधकों एवं सहायक आचार्य के आवश्यकतानुसार बनाए रखना, परिसर में सामान्य रखरखाव इत्यादि।


सहायक शिक्षक भी पूर्णकालिक आधार पर नहीं होते हैं। उन्हें स्वयं श्री गोयंका जी द्वारा प्रशिक्षित और चयनित किया गया है और वे इन शिविरों के समन्वय और संचालन के लिए आते हैं। 

धम्म गिरी परिसर
धम्म गिरी परिसर में पेड़ ही पेड़ दिखाई देते हैं। मार्च में जब हम वहां थे, तब परिसर में बहुत हरियाली थी।  इतने वृक्षों और पौधों को वहाँ लगाने की योजना जिन्होंने भी बनाई हो, जिन्होंने भी इतने वर्षों तक उनका पोषण किया हो - उन्हें मैं नमन करता हूँ। इगतपुरी में और इसके आसपास का सामान्य क्षेत्र काफी बंजर लगता है। शायद ही कोई वनस्पति हो। लेकिन धम्म गिरी परिसर उसके विपरीत है। यह वनस्पतियों से समृद्ध है और इस प्रकार, कई पक्षियों के लिए एक प्राकृतिक आवास है।


आर्य मौन के कारण हम हमेशा चुप रहते। हमारी चुप्पी के कारण पक्षियों का चहकना और भी बढ़-चढ़  कर सुनाई पड़ता था जो कि एक बहुत ही सुखद अनुभव था। मुझे स्मरण होता है हर शाम 6.00 से 7.00 बजे का तीसरा समूह ध्यान सत्र। उस समय दिन ढल रहा होता था। ऐसे समय में ध्यान करना, अधिष्ठान का पालन करते करते  लगभग 35 से 40 मिनट के बाद ध्यान पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता। ऐसा प्रतीत होता  था कि समय थम गया हो। लेकिन जैसे-जैसे एक एक मिनट गुजरता, शाम ढलती जाती थी और लगभग 6.45 बजे, हमारे धम्म हॉल के आसपास के पेड़ों पर अपने घोंसलों में लौटने वाले पक्षियों के जोरदार चहकने से बहुत आनंद का आभास होता। हमारी दिनचर्या के कारण मैं उन्हें कभी देख नहीं पाया, लेकिन मुझे लगता है कि कम से कम एक या दो हज़ार पक्षी उस समय वहाँ होते होंगे। सचमुच, यह मुझे बहुत प्यारा संगीत जैसे लगता था। इससे  यह भी एक संकेत प्राप्त होता था कि समीप के मस्जिद से कुछ ही मिनटों में अब आज़ान सुनाई देने वाला है जिसके थोड़े ही देर बाद श्री गोयंका जी का स्वर और यह सत्र समाप्त।


साधकों को परिसर में पेड़ों से फूल या फलों को तोड़ना वर्जित है, जो मुझे लगता है कि एक बहुत अच्छा विचार है।


जब हम वहां थे, अनेक निर्माण कार्य पूरे जोरों पर चल रहे थे। मैंने केंद्रीय पगोडा में मरम्मत के बारे में पहले ही उल्लेख किया है। हमारे धम्म हॉल के करीब एक नई इमारत का निर्माण चल रहा था। विभिन्न निर्माण गतिविधियों के शोर और ध्वनियों से हमें बहुत कष्ट होता था। हममें से कई लोगों को इसकी आदत हो गई थी, क्योंकि कोई दूसरा विकल्प नहीं था। हमारे समूह के साधकों में से एक ने बहुत प्रयत्न किया, पहले इस विषय में उन्होंने धम्म सेवक से और इसके पश्चात हमारे सहायक आचार्य से उन्होंने निर्माण गतिविधियों के कारण ध्यान करने में एकाग्रता की कमी का वर्णन किया लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ भी करने में असमर्थता जताई। संभवत: विपश्यना की भावना में, हमें इसे भी समता की दृष्टि से देखना था और यह सोचना था कि यह भी अनित्य है।

धम्म गिरी का परिसर बहुत बड़ा परिसर है और हम उसके एक छोटे से हिस्से में ही सीमित थे। मैंने कहीं पढ़ा था कि परिसर के एक अलग हिस्से में लंबे शिविर (60 दिनों तक के शिविर होते हैं) आयोजित किए जाते हैं। परिसर से बाहर जाते समय, मैंने कुछ इमारतों को देखा, जिससे लगा कि वहाँ एक सघन आवास कालोनी है।

परिसर में और भी पगोडा हैं जिन्हें कि प्रमुखता से रेल गाड़ियों से भी देखा जाता है।


कहीं-कहीं, कुछ पगोडा में, विशाल घंटे हैं जो दिनचर्या के अनुसार गतिविधियों के प्रारम्भ होने का संकेत देते हैं। मैंने प्रतिदिन सुबह 4.00 बजे जागने का आह्वान किया है। मैंने यह भी उल्लेख किया है कि हम निर्धारित समय से पहले भोजन कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते थे। इन सब का संचालन इन विशाल घंटों की आवाज़ से ही होता था।

धम्म गिरी से इगतपुरी और वापस उडुपी-मणिपाल
इगतपुरी से ठाणे तक हमें मनमाड-एलटीटी एक्सप्रेस से यात्रा करना था जो कि वहाँ से सुबह 10.25 बजे चलती है और ठाणे 12.20 बजे पहुँचती है। ठाणे से हमें मत्स्यगंधा एक्सप्रेस से अपराह्न 3.45 बजे निकलना था। चूंकि करने के लिए बहुत कुछ नहीं था, इसलिए संध्या और मैंने तय किया था कि हम इत्मीनान से धम्म गिरी से इगतपुरी रेलवे स्टेशन  पैदल जाएँगे। उसी ट्रेन से यात्रा करने वाली सुश्री ईशा गुलाटी ने हमें बताया कि वह भी चलना पसंद करती हैं और हमारे साथ जाएँगी।


हम जल्दी में नहीं थे और 8.15-8.20 बजे के आसपास हम वहाँ से निकले। परिसर में ही हम कुछ स्थानों पर उद्यान और हरियाली देखने रुक गए। सभी संभावित छायाचित्रों को क्लिक करने के बाद हमने म्यांमार गेट, जो धम्म गिरी का मुख्य द्वार है, लगभग 8.45 बजे पार किया। 

धम्म गिरी परिसर के भीतर एक उद्यान 
(छायाचित्र सुश्री ईशा गुलाटी द्वारा)

धम्म गिरि के मुख्य द्वार के पास

मुख्य द्वार के पास आगंतुक स्वागत क्षेत्र


मुख्य द्वार के पास


टहलते-टहलते हम इगतपुरी रेलवे स्टेशन 9.15 बजे पहुँच गए। हम जहां हमारी रेलगाड़ी आने की सम्भावना  थी उसके पास वाले प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कुछ कुर्सियों पर आराम से बैठ गए। 


हमने अपने विपश्यना पाठ्यक्रम के कुछ साथियों को वहाँ देखा, निश्चित ही वे भी उसी रेलगाड़ी  की प्रतीक्षा कर रहे थे।


किसी ने हमारा ध्यान इस ओर दिलाया कि हमारी ट्रेन रद्द हो गई है। रेलवे अधिकारियों से हमें पता चला कि वह रविवार का दिन होने के कारण, आसनगांव स्टेशन के पास एक रेलवे पुल की मरम्मत होना तय था, जिसके कारण हमारी रेलगाड़ी रद्द कर दी गई।


तुरंत हमने वहाँ उपस्थित कुछ अन्य साधकों के साथ विचार-विमर्श किया और हमने एक उपयुक्त वाहन किराए पर लेने और सड़क मार्ग से जाने का फैसला किया। हम बाहर गए जहाँ हमें एक टैक्सी चालक मिला। उससे चर्चा  करने के बाद हम सात यात्री, प्रोफेसर कृष्णा अल्गावे और उनकी पत्नी, श्री कलिटा, श्री जितेश मेध, सुश्री ईशा  गुलाटी और संध्या एवं मैं उस टैक्सी में वहाँ से निकल पड़े। यह एक बहुत ही सुखद यात्रा थी। हम ठाणे में उतर गए। अन्य पांचों को मुंबई में अन्य स्थानों पर जाना था। इसलिए हमने उन्हें अलविदा कहा और ठाणे रेलवे स्टेशन के लिए एक ऑटो रिक्शा लिया।


हम लगभग 12.00 बजे ठाणे रेल्वे स्टेशन पहुँच गए।


ठाणे में हमारी चिर-परिचित मत्स्यगंधा एक्सप्रेस समय पर थी। लेकिन अगली सुबह हम उडुपी लगभग दो घंटे विलम्ब से पहुँचे।


हम लगभग 8.30 बजे अपने निवास पर थे।


संध्या और मैं विपश्यना, श्री गोयंका जी और धम्म गिरी के बड़े प्रशंसक बन गए हैं। हम अभी से अपने अगले 10-दिवसीय शिविर की योजना बना रहे हैं। हमने दिन में दो बार विपश्यना ध्यान को अपनी सामान्य दिनचर्या में शामिल कर लिया है।


इस लेख का शीर्षक "हमारी विपश्यना यात्रा" है और यहां मैं इस लेख के अंत में हूं। मैंने हमारी यात्रा से सम्बंधित एक-एक शब्द इस लेख में डाल दिया है। तो क्या मेरी विपश्यना यात्रा समाप्त हो गई है?


नहीं, नहीं नहीं नहीं नहीं! वास्तव में, मेरी विपश्यना यात्रा अभी प्रारम्भ हुई है। अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। लेकिन शुभ समाचार यह है कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह एक रोमांचक और सुखद यात्रा होगी।


मैंने अपने अधिकांश परिचितों को पहले ही 10-दिवसीय विपश्यना शिविर की अनुशंशा की है।


और आप? आप विपश्यना शिविर में भाग ले चुके हैं? आप भाग्यशाली हैं, हैं न?


क्या, मैंने यह सुना कि आपने विपश्यना नहीं सीखा है? फिर आप किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? अगले उपलब्ध शिविर के लिए पंजीकरण क्यों नहीं करते हैं?




सभी प्राणियों का मंगल हो, सबका कल्याण हो.  बिना अपवाद के सब जीव-जंतु, सब प्राणी, चाहे वे चलने-फिरने वाले हों  या स्थिर हों, चाहे बड़े, महान, मध्यम या छोटे हों, चाहे बहुत ही छोटे या ठोस हों, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, चाहे वह निकट हों या सुदूर, चाहे जन्मे या अजन्म, सब सुखी हों. कहीं भी, कोई भी किसी को धोखा न दें या किसी से घृणा न करें. कोई भी क्रोध या घृणा में किसी अन्य की हानि की इच्छा न करें.

जय हिन्द!


(यह मेरे ब्लॉग पोस्ट "Our Vipassana Journey" (https://colktudupa.blogspot.com/2019/04/our-vipassana-journey.html ) का हिंदी अनुवाद है. उपरोक्त अनुवाद मेरे द्वारा किया गया था. इसके पश्चात, इसे श्री जय नाथ यादव, राजभाषा अधिकारी, भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर द्वारा सही किया गया. केवल उन्हीं के पहल के फलस्वरूप इसका संक्षिप्त संस्करण नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, इंदौर की गृह पत्रिकादिशाअंक 13, वर्ष 2019 में प्रकाशित किया गया. मैं श्री जय नाथ यादव का हमेशा आभारी रहूँगा.)